सोमवार, 11 मई 2020

विचारधारा

मैं, 
किसी नापसंद को
इसलिए पढ़ने से नहीं बचता
कि वो मुझे पसंद नहीं
बल्कि, उसे इसलिए पढ़ता हूं 
कि मैं देख सकूं उसमें 
कितना जहर बढ़ चुका है अब तक

सोमवार, 25 जून 2018

झूठी मुस्कान


स्मृति पटल पर दिल से
पहले संकीर्णता का
परदा उठाना पड़ता है
तभी तो प्यार की दस्तक से
रू-ब-रू होकर
किसी के अहसासों को
महसूस किया जाता है
ये तो बड़प्पन है या निरी मूर्खता
किसी की खुशी के लिए
झूठी मुस्कान उड़ाना

सोमवार, 13 मार्च 2017

निषेध



मैं उसी रास्ते से
क्यूं गुजरता हूं हमेशा
जिस रास्ते पर
देवालय है प्रसिद्ध

और उसकी भींत पर
लगा चमकीला फ्लैक्स
जिस पर लिखा हुआ है
स्वर्णिम अक्षरों में
‘यहां स्त्रियों का प्रवेश निषेध हैं’

क्या शब्द भी इतने
कठोर होते हैं
अंधश्रद्धा पर

मनुष्य की तरह

सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

मां



मेरे उठने से पहले 
बुहार देती है मां सड़क
बीन देती है कांटे
बिखरे हुए कंकड़ भी
जहां से मैं गुजरता हूं
हर रोज रात-बिरात साइकिल से

मेरे  उठने से पहले
लगा देती है धूप-दीप
पूज देती है भगवान को
जिसे देखा नहीं है उसने कभी

और मेरी नास्तिकता पर
लगा देती है शब्दों की झड़ियां
कर देती है सराबोर भावनाओं से

नहीं रोती वो रोना अपनी फूटी तकदीर पर
जिससे छिन लिए गए सारे सुख 
समय से पहले

झेली है मार विपरीत परिस्थितियों की
और बनी है गुनहगार समय की

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

एक और अध्याय



अतीत के पृष्ठों में जुड़ गया
एक और अध्याय
उजली और स्याह
इबारतों में कैद होकर

बदलती हैं तारीखें हर रोज
देती हैं हमें न्यौता
अवसरों को भुनाने का

नई सुबह आती है रोज
खट्टे-मीठे अनुभवों से
रू-ब-रू कराने,
देती है सीख
मानवता को निबाहने का,
प्रेम बांटने का,
आंसू पौछने का,
मुस्कुराते रहने का,
ऊहापोह को छोड़
अपने पराए को अपनाने का

इसी तरह तो
जुड़ता हैं अतीत के पृष्ठों में
एक और अध्याय